हमारे बुज़ुर्ग सच्ची बहुत ही समझदार थे,
इसलिए लड़कियों को घर पे और ,
लड़को को पाठशाला पढ़ने भेजा करते थे,
पढ़ाई लिखाई से, पाठ करने से दिमाग खुलता है,
आदमी किसी लायक बनता है,
आदमी किसी तो लायक बनेगा,
औरतें जन्म से ही जिम्मेदार होती है,
ज़्यादातर,
बिना पाठशाला में गणित पढ़े,
घर खर्च चलाती है,
Economics कठिन होगा कइयों के लिए,
लेकिन economics का मूल तो मेरी दादी ने,
मुझे बचपन में ही सिखा दिया,
कब क्या खरीदना है,
हिसाब से कैसे चलना है,
और Savings,
Savings के तारीखे औरतों से बेहतर,
कोई नही जनता,
अनजाने में ही सही Science की प्रोफेसर,
होती है, खाने में नामक कब डालना है,
किस सब्ज़ी में कौनसा मसाला,
किस अनुपात में डाला जाएगा,
अरबी में अजवाइन, कड़ी में पंचकूट,
खटाई में राई का छौंक,
सिर्फ स्वाद का खेल नहीं, सेहत के लिए,
क्या है लाभदायक, डॉक्टर से पहले,
औरत बताती है इलाज,
तो क्या हुआ sociology नहीं पढ़ा,
लेकिन पढ़े लिखों से ज़्यादा,
हमारी बड़ी बताती थी कचरा इधर उधर मत फेको,
घर में झाड़ू भी तो वही लगाती थी,
गिला सुख अलग रखो,
रसोई में हाथ धोये बिना ना घुसों,
घर मैं चप्पल न पहनों,
शनिवार को तेल की मालिश करवालों,
ऊपर वाले का नाम जाप लो।
बाप रे list पूरी होती नहीं,
और आदमी है जो आज भी सीखता नहीं।
मेरी 2 साल की बेटी चीजें जगह पे,
रखती है, खाने के बाद बर्तन मांजने में,
रखती है।
लेकिन मेरी सहेली का पति आज भी,
T.v , पंखा, लाइट, गीज़र खुला छोड़ता है,
खुद की फ़ाइल ढूंढते समय रोज़ अपनी बीवी,
पे चिड़चिड़ाता है।
आइंस्टीन को स्कूल से निकले जाने पर,
उनकी माँ ने उन्हें पढ़ाया था,
नारायण मूर्ति infosys के मालिक है,
लेकिन उनका साथ, उनके घर का सिस्टम,
सब उनकी बीवी ने संभाल था।
विडंबना असल में ये है,
औरत का समर्पण ही उसे मोक्ष,
से दूर करता है,
सबको संभालते-संभालते, वो डोरियाँ,
उसके उंगलियों में ऐसे घुस जाती है,
कभी बच्चों से ममता में, कभी पति के मोह में,
कभी फ़र्ज़ तो कभी संस्कार, कुछ न कुछ,
आड़े आता है,
खेलने, सजने के शौक को छोड़,
Cooking को अपना carrer बना लेती है,
सफाई, नर्सिंग, धोबी, interior में,
एक्सपर्ट बन जाती है।
घर में ताकत माँ ही लाती है,
जो पहले औरत और उससे पहले लड़की
होती है।
इतना संभालने पर भी,
ये दुनियाँ पति को देवता इसलिए
कहती है, क्योंकि महारानी होने पर,
सीता ने नहीं,
अहम कभी मंदोदरी में नहीं,
एक बेटी , पत्नी, बहु माँ बनने
के बाद, मायके में नहीं,
कोई परीक्षा, अपेक्षा, स्वार्थ वो रखती नहीं,
अपनाने की शक्ति धरती माँ में है,
समुद्र तो कचड़ा निकल फेकता है,
सृजिन की शक्ति, बहने की शक्ति,
सींचने की शक्ति,
औरत देवी नहीं, माँ बनकर ही खुश है,
वो आज भी प्रकृति से जुड़ी है,
हेम पुत्री होकर भी कैलाश में,
वैरागी संग घर बसाती है,
महालक्ष्मी होकर भी विष्णु के पैर दबाती है,
स्व ब्रम्हाड़ी होकर, रचयिता ब्रह्मा को कहलाती है,
आदमी के अहम को,
उसके नाजायज़ अहम को,
औरत ही शांत कराती है,
औरत ही शांत कराती हैं।.....
चारुलता